उर्दू शायरी और अरूज़ की दुनिया में "रुक्न" एक अत्यंत महत्वपूर्ण शब्द है, जिसकी गहराई को समझना हर शायर, ग़ज़लकार और छंद-प्रेमी के लिए आवश्यक है। यह मात्राओं के विशेष समूह होते हैं, जिनसे किसी भी शेर की बहर (मीटर) बनती है। जिस तरह कविता में छंद की लय होती है, उसी तरह ग़ज़ल में बहर होती है — और बहर की आत्मा होते हैं रुक्न। इस लेख में हम विस्तार से समझेंगे कि रुक्न कितने प्रकार के होते हैं, उन्हें कैसे पहचाना जाता है, उनकी मात्रा क्या होती है, और इनका बहरों से क्या संबंध है। रुक्न के दो मुख्य भेद होते हैं — सालिम रुक्न (मूल रुक्न) और मुज़ाहिफ़ रुक्न (उप-रुक्न)।
इन दोनों को समझना न सिर्फ अरूज़ सीखने में मदद करता है, बल्कि शायरी को तक़नीकी रूप से सुंदर और सटीक बनाता है। यह पोस्ट उन छात्रों और साहित्य प्रेमियों के लिए विशेष रूप से उपयोगी है जो ग़ज़ल की संरचना को गहराई से समझना चाहते हैं। नीचे दिए गए अध्याय से आप जानेंगे कि कैसे 122, 212, 11212 जैसी मात्राएँ शेर के ताने-बाने में घुलती हैं, और कैसे हर बहर के पीछे रुक्नों की एक लयबद्ध वैज्ञानिकता छिपी होती है।
लफ़्ज़ों की तौल क्या है?
"लफ़्ज़ों की तौल" एक ऐसा मुहावरा है जो साहित्य, विशेषकर शायरी, कविता, भाषण और लेखन में बहुत महत्व रखता है। इसका तात्पर्य होता है — शब्दों का चयन, उनका वज़न, प्रभाव और परिस्थिति के अनुसार उनका सही इस्तेमाल । शब्द केवल अक्षरों का मेल नहीं होते — उनमें भावनाएँ, विचार, और असर छिपा होता है। जब कोई कहता है "लफ़्ज़ों की तौल करो", तो उसका अर्थ होता है:"बोलने या लिखने से पहले सोचो कि तुम्हारे शब्द का क्या असर होगा।"
यह कहावत हमें सिखाती है कि शब्दों का इस्तेमाल बहुत सोच-समझकर करना चाहिए, क्योंकि एक छोटा-सा शब्द किसी को बना भी सकता है और तोड़ भी सकता है।
जैसे:
"तुम मिरे पास होता है गोया
जब कोई दूसरा नहीं होता"
— मोमिन खां मोमिन
इस शेर को अरूज़ के नियमों से जांचने के लिए हमें यह देखना होगा कि इसमें हर लफ़्ज़ कितनी मात्रा (वज़न) का है, और किस बहर में यह शेर है।
✍ अरूज़ में हर लफ्ज़ को टुकड़ों (रुक्न/feet) में बांटा जाता है:
जब दो या दो से अधिक मात्रा वाले अक्षरों का कोई विशेष क्रम बनता है, और वह बार-बार किसी छंद में दोहराया जाता है, तो उसे रुक्न कहते हैं।
रुक्न कई प्रकार के हो सकते हैं, लेकिन मूल रूप से इन्हें दो भागों में बाँटा गया है
1. सालिम रुक्न (मूल रुक्न)
सालिम का अर्थ है – संपूर्ण या बिना किसी परिवर्तन के।
सालिम रुक्न वे होते हैं जो अपने मूल स्वरूप में होते हैं, जिनमें किसी भी मात्रा को घटाया या बदला नहीं गया होता। ये बहर की संरचना में एक मजबूत ढांचा प्रदान करते हैं।
इनमें कुछ प्रमुख रुक्न इस प्रकार होते हैं:
- फ़ऊलुन – इसका मात्रा पैटर्न होता है: 1 2 2
- फाइलुन – 2 1 2
- मुफाईलुन – 1 2 2 2
- फाइलातुन – 2 1 2 2
- मुस्तफ़इलुन – 2 2 1 2
- मुफाईलातुन – 1 1 2 1 2
- मफ़ाईलुन – 1 2 1 1 2
- फाइलातु – 2 2 2 1
इन रुक्नों के अरबी अक्षरों के टुकड़े भी होते हैं, जैसे:
- फ़ / ऊ / लुन (फ़ऊलुन – 1 2 2)
- फ़ा / इ / लुन (फाइलुन – 2 1 2)
- मु / फ़ा / इ / लुन (मुफाईलुन – 1 2 2 2)
- फ़ा / इ / ला / तुन (फाइलातुन – 2 1 2 2)
हर रुक्न एक विशिष्ट बहर का हिस्सा होता है, जैसे:
मुक़ारिब बहर का रुक्न – फ़ऊलुन (122)
मुतदारिक – फाइलुन (212)
हज़ज – मुफाईलुन (1222)
रजज़ – मुस्तफ़इलुन (2212)
कामिल – मुफाईलातुन (11212)
वाफ़िर – मफाईलुन (12112)
2. मुज़ाहिफ़ रुक्न (उप-रुक्न)
मुज़ाहिफ़ का मतलब होता है – बदला हुआ या काट-छांट किया हुआ।
जब सालिम रुक्न की मात्रा में कमी या फेरबदल कर दिया जाता है, तो उससे नया उप-रुक्न बनता है। ये रुक्न उसी मूल रुक्न से निकलते हैं, लेकिन उनमें मात्रा कम या स्थान बदला हुआ होता है।
इन रुक्नों के कुछ उदाहरण मात्रा-पैटर्न के अनुसार इस प्रकार हैं:
- 21 → फ़ा'ल
- 12 → फा’
- 22 → फ़ून
- 121 → फ़ऊल
- 12 → फ़इ’लुन
- 221 → मफ़ऊल
- 222 → फाइलुन
- 1122 → फाइलातुन
- 1212 → मुफाइलुन
- 2112 → फाइलातुन
- 1121 → फइलान
- 1211 → मफाइलु
यह ध्यान देना ज़रूरी है कि उप-रुक्न मूल रुक्न की ही शाखा होते हैं। इनसे बहर में नयापन आता है, और कभी-कभी आसानी भी होती है।
उदाहरण के लिए:
🧮 लफ़्ज़ की वज़न पहचानने के नियम (Basics):
- हर हरफ़ (अक्षर) को या तो हर्फे-साकिन (हल्का - 1 मात्रा) या हर्फे-मोतहर्रिक (भारी - 2 मात्रा) माना जाता है।
- दो तरह की मात्रा मानी जाती हैं:
- मात्रा = हल्का, जैसे "क", "ल", "त"
- मात्रा = भारी, जैसे "का", "ते", "रू"
- तख़्ती करते समय हम लफ़्ज़ों को तोड़कर मात्राओं की लंबाई से परखते हैं।
🔍 तख़्ती: अब हम 7-8 मशहूर ग़ज़लों की तख़्ती करेंगे
1. ग़ालिब
" हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले"
तख्ती:
1222 1222 1222 1222
हज़ारों ख़ा / हिशे ऐसी / कि हर ख़्वाहिश / पे दम निकले"
1222 1222 1222 1222
बहुत निकले / मिरे अरमा / न लेकिन फिर / भी कम निकले
👉 बहर: हज़ज मुसम्मन सालिम
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
1222. 1222. 1222. 1222
2. जौन एलिया
"अब नहीं कोई बात ख़तरे की"
अब सभी को सभी से ख़तरा है"
तख्ती:
2122 1212 22
अब नहीं को / ई बात ख़त / रे की
2122 1212 22
अब सभी को / सभी से ख़त / रा है"
👉 बहर: ख़फ़ीफ़ मुसद्दस मख़बून महज़ूफ़ मक़तू
फ़ाएलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
2122 1212 22
3. राहत इन्दोरी
"बुलाती है मगर जाने का नईं
तख्ती:
1222 1222 122
बुलाती है / मगर जाने / का नईं
1222 1222 122
वो दुनिया है / उधर जाने / का नईं
👉 बहर: हज़ज मुसद्दस महज़ूफ़
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन
1222 1222 122
4. फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
"गुलों में रंग भरे, बादे-नौबहार चले"
तख्ती:
1212 1122 1212 112
गुलों में रं / ग भरे बा / द-ए-नौ-बहा / र चले
1212 1122 1212 112
चले भी आ / ओ कि गुलशन / का कारोबा / र चले
👉 बहर: मुजतस मुसमन मख़बून महज़ूफ
मुफ़ाइलुन, फ़इलातुन, मुफ़ाइलुन, फ़ेलुन
1212, 1122, 1212, 22
5. मीर तकी मीर
"इब्तिदा-ए-इश्क़ है, रोता है क्या"
तख्ती:
2122 2122 212
इब्तिदा-ए / इश्क़ है, रो / ता है क्या
2122 2122 212
आगे आगे / देखिए हो / ता है क्या
👉 बहर: रमल मुसद्दस महज़ूफ़
फ़ाइलातुन, फ़ाइलातुन, फ़ाइलुन ,
2122, 2122, 212
6. अहमद फ़राज़
"रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ"
तख्ती:
221 1221 1221 122
रंजिश ही / सही दिल ही / दुखाने के / लिए आ
221 1221 1221 122
आ फिर से / मुझे छोड़ / के जाने के / लिए आ
👉 बहर: हज़ज मुसम्मन अख़रब मकफ़ूफ़ महज़ूफ़
मफ़ऊल मुफ़ाईलु मुफ़ाईलु फ़ऊलुन
221 1221 1221 122
7. निदा फ़ाज़ली
"हर आदमी में होते हैं दस-बीस आदमी"
तख्ती:
221 2121 1221 212
हर आद / मी में होते / हैं दस बीस / आदमी
221 2121 1221 212
जिस को भी / देखना हो / कई बार / देखना
👉 बहर:मुज़ारे मुसम्मन अख़रब मकफ़ूफ़ महज़ूफ़
मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन
221 2121 1221 212
8. बशीर बद्र
"उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो"
तख्ती:
1222 1222 1222 1222
उजाले अप / नी यादों के / हमारे सा / थ रहने दो
1222 1222 1222 1222
न जाने किस / गली में ज़िं / दगी की शा / म हो जाए
👉 बहर: हज़ज मुसम्मन सालिम
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
1222 1222 1222 1222
📌 NOTE
लफ़्ज़ों की तौल का अभ्यास अरूज़ की समझ को मज़बूत करता है।
हर शेर की अपनी बहर होती है, और शायर को उसका पालन करना चाहिए।
आप भी अभ्यास कर सकते हैं — अपनी ग़ज़लों को तख़्ती करके उनकी बहर पहचानें।
- 1. शायरी का इतिहास
- 2. शेर, ग़ज़ल, नज़्म, क़सीदा
- 3. शायरी की रचना
- 4. क़ाफ़िया, रदीफ़ का महत्व
- 5. तख़ल्लुस का मतलब
- 6. उर्दू शब्दों की मिठास
- 7. शायर की पहचान