ग़ज़ल की दुनिया में अगर भावनाएँ रूह हैं, तो अरूज़ उसका ढाँचा है। इस लेख में हम ग़ज़ल लेखन की नींव रखने वाले तत्वों पर बात करेंगे — जैसे सालिम रुक्न और उनकी पहचान, मुतहर्रिक और साकिन हरूफ़ का सही ज्ञान, सबब और वतद की लयात्मक भूमिका, ज़ुज़ द्वारा मिसरों का विभाजन, ज़िहाफ़ के ज़रिए रुक्नों का परिवर्तन, और अरूज़ में फ़ासिला जैसी अदृश्य किन्तु प्रभावशाली अवधारणाएँ। चाहे आप एक नए शायर हों या ग़ज़लों के गहरे विद्यार्थी — यह लेख अरूज़ को व्यावहारिक और सरल रूप में समझने में आपकी मदद करेगा।
सालिम रुक्न और उनकी पहचान
उर्दू शायरी में "अरूज़" यानी छंद-विधान की अहमियत वही है जो दिल में धड़कन की होती है। शायरी का हर मिसरा, हर शेर किसी न किसी बहर (छंद) में होता है, और हर बहर कुछ खास "रुक्न" (छंदात्मक इकाइयों) पर आधारित होती है। इन्हीं रुक्नों को हम अरूज़ की भाषा में "सालिम रुक्न" कहते हैं, और इनकी समझ शायरी की बुनियादी ज़रूरतों में से एक है।प्रमुख सालिम रुक्न:
फ़ऊलुन (فَعُولُن)
- वज़्न पैटर्न: 1 – – (1 2 2)
- संबंधित बहर: बह्र-ए-मुतक़ारिब
- पंच-अक्षरी रुक्न
फ़ाइलुन (فَاعِلُن)
- वज़्न: – 1 – (2 1 2)
- संबंधित बहर: बह्र-ए-मुतदारिक
- पंच-अक्षरी रुक्न
मफ़ाईलुन (مَفَاعِيلُن)
- वज़्न: 1 – – – (1 2 2 2)
- संबंधित बहर: बह्र-ए-हज़ज
- सप्त-अक्षरी रुक्न
फ़ाइलातुन (فَاعِلَاتُن)
- वज़्न: – 1 – – (2 1 2 2)
- संबंधित बहर: बह्र-ए-रमल
- सप्त-अक्षरी रुक्न
मुसतफ़इलुन (مُسْتَفْعِلُن)
- वज़्न: – – 1 – (2 2 1 2)
- संबंधित बहर: बह्र-ए-रजज़
- सप्त-अक्षरी रुक्न
मुतफ़ाइलुन (مُتَفَاعِلُن)
- वज़्न: 1 1 – 1 – (1 1 2 1 2)
- संबंधित बहर: बह्र-ए-कामिल
- सप्त-अक्षरी रुक्न
मुफ़ाइलतुन (مُفَاعَلَتُن)
- वज़्न: 1 – 1 1 – (1 2 1 1 2)
- संबंधित बहर: बह्र-ए-वाफ़िर
- सप्त-अक्षरी रुक्न
मफ़ऊलातु (مَفْعُوْلَاتُ)
- वज़्न: – – – 1 (2 2 2 1)
- कम प्रयुक्त, कोई सालिम बहर इससे नहीं बनती
- सप्त-अक्षरी रुक्न
रुक्न और उनके अन्य नाम
रुक्न को अन्य नामों से भी जाना जाता है, जैसे:
- अफ़ाइल
- तफ़ाइल
- औज़ान
- मीज़ान
- उसूल
ख़म्मासी और सुबाई रुक्न की पहचान
🟢 ख़म्मासी रुक्न (5 अक्षर वाले):
- फ़ऊलुन (1 2 2)
- फ़ाइलुन (2 1 2)
🔵 सुबाई रुक्न (7 अक्षर वाले):
- मफ़ाईलुन (1 2 2 2)
- फ़ाइलातुन (2 1 2 2)
- मुसतफ़इलुन (2 2 1 2)
- मुतफ़ाइलुन (1 1 2 1 2)
- मुफ़ाइलतुन (1 2 1 1 2)
- मफ़ऊलातु (2 2 2 1)
हिंदी छंद और उर्दू अरूज़ में समानता
- हिंदी में जैसे 8 गण होते हैं, वैसे ही उर्दू अरूज़ में 8 सालिम रुक्न होते हैं।
- फ़ऊलुन और फ़ाइलुन हिंदी के गणों यगण (1 2 2) और रगण (2 1 2) से मिलते हैं।
- माना जाता है कि यह दोनों वज़्न उर्दू में हिंदी से आए हैं।
उर्दू हरूफ़ और हिंदी वर्णमाला में अंतर
- हिंदी में वर्णमाला होती है, उर्दू में 'हिज्जे' या 'हरूफ़-ए-तहज्जी'।
- उर्दू में 35–36 अक्षर होते हैं, जिनमें कई अरबी, फ़ारसी, तुर्की और हिंदी से आए हैं।
नुक्तों का खेल:
- उर्दू में ज़, क़, ख़ आदि के लिए अलग हरूफ़ होते हैं।
- हिंदी में इन्हें एक ही अक्षर से दर्शाया जाता है।
- आजकल आम बातचीत और लेखन में यह अंतर मिटता जा रहा है, लेकिन शायरी में अब भी इनका महत्व है।
मुतहर्रिक और साकिन हरूफ़
साकिन हरूफ़:
- मूल स्वरहीन अक्षर जैसे: क्, ज़्
- बिना हरकत के मौन रहते हैं
- उर्दू का हर शब्द साकिन अक्षर पर खत्म होता है
मुतहर्रिक हरूफ़:
- जब साकिन अक्षर पर कोई हरकत लगाई जाती है
- तीन प्रमुख हरकतें:
- ज़बर (ـَ) → क् + ज़बर = क
- ज़ेर (ـِ) → क् + ज़ेर = कि
- पेश (ـُ) → क् + पेश = कु
याद रखने योग्य बातें:
- शेर का वज़्न समझने, बह्र पहचानने और तक़्तीअ’ (मात्रा-गणना) के लिए मुतहर्रिक और साकिन की पहचान ज़रूरी है।
- किसी शब्द का पहला अक्षर हमेशा मुतहर्रिक होता है।
- अगर आप उर्दू शायरी को गहराई से समझना चाहते हैं, तो अरूज़, वज़्न, बह्र, और रुक्न की बुनियादी जानकारी रखना बेहद ज़रूरी है।
- यह न सिर्फ़ आपकी तख़्लीक़ी सलाहियत को मज़बूत बनाएगा, बल्कि आपको हर मिसरे के पीछे छुपी लय और बनावट का भी एहसास कराएगा।
सबब क्या है?
सबब अरूज़ (उर्दू छंदशास्त्र) का एक मूलभूत तत्व है। किसी शेर के वज़्न को सही ढंग से तौलने के लिए सबसे पहले सबब की पहचान आवश्यक होती है।
सबब = ऐसा लफ़्ज़ (शब्द) या ध्वनि जो दो हरूफ़ (अक्षरों) से बना हो। ये शब्द अर्थपूर्ण भी हो सकते हैं जैसे — हम, तुम, अब, दिल या अर्थहीन भी हो सकते हैं जैसे — तुन, फा, मुस अरूज़ में सबब का प्रयोग वज़्न निर्धारण के लिए किया जाता है।
सबब-ए-ख़फ़ीफ़ (हल्का सबब)
परिभाषा
ऐसा दो-अक्षरी शब्द जिसमें पहला अक्षर मुतहर्रिक (बोले जाने योग्य) हो और दूसरा अक्षर साकिन (शांत) हो।
🔸 वज़्न प्रतीक
ऐसे शब्दों का वज़्न 2 होता है।
🔸उच्चारण विधि
पहला अक्षर बोला जाता है और दूसरा शांत रहता है।
🔸 उदाहरण
अब → अ (मुतहर्रिक), ब (साकिन) = वज़्न 2
ख़त → ख़ (मुतहर्रिक), त (साकिन) = वज़्न 2
तुन → त (मुतहर्रिक), न (साकिन) = वज़्न 2
मुस → म (मुतहर्रिक), स (साकिन) = वज़्न 2
🔸टिप-- उर्दू में लगभग हर शब्द की शुरुआत मुतहर्रिक और समाप्ति साकिन से होती है, इसलिए अधिकतर दो-अक्षरी शब्द अपने-आप सबब-ए-ख़फ़ीफ़ बन जाते हैं।
सबब-ए-सकील (भारी सबब)
🔹 परिभाषा
ऐसा दो-अक्षरी शब्द जिसमें दोनों अक्षर मुतहर्रिक हों यानी दोनों पर हरकत हो और दोनों उच्चारित हों।
🔸 वज़्न प्रतीक
इस प्रकार के शब्द का वज़्न 1 1 होता है।
🔸 उच्चारण विधि
दोनों अक्षर पूर्ण रूप से बोले जाते हैं, जिससे शब्द थोड़ा भारी लगता है।
🔸 विशेष सूचना
उर्दू में ऐसे शब्द बहुत कम मिलते हैं। लेकिन विशेष परिस्थितियों में जब किसी शब्द के बाद इज़ाफ़त (-ए-) या वाव-ए-अत्फ़ (-ओ-) आता है, तो अंतिम साकिन अक्षर पर हरकत महसूस होती है और वज़्न बदल जाता है।
🔸 उदाहरण
- ग़म-ए-दिल → "ग़म" में मीम साकिन → "-ए" के कारण मीम पर हरकत → वज़्न = 1 1
- दिल-ए-नादाँ → "दिल" में लाम साकिन → "-ए" के कारण लाम पर हरकत → वज़्न = 1 1
- दौर-ए-हाज़िर → "दौर" में रे साकिन → "-ए" के कारण रे पर हरकत → वज़्न = 2 1
- रंज-ओ-अलम → "रंज" में ज़ साकिन → "-ओ" के कारण ज़ पर हरकत → वज़्न = 2 1
- जान-ओ-जिगर → "जान" में न साकिन → "-ओ" के कारण न पर हरकत → वज़्न = 2 1
🔸 हरकत महसूस होना क्या है?
जब कोई साकिन अक्षर इज़ाफ़त या वाव-ए-अत्फ़ के कारण मुतहर्रिक की तरह बोला जाए, तो कहा जाता है कि उस अक्षर पर हरकत महसूस होती है। इसका सीधा असर वज़्न पर पड़ता है, और शब्द भारी हो जाता है।
सबब और रस्सी का संबंध
🔹 उपमा (Metaphor)
"सबब" का एक शाब्दिक अर्थ रस्सी भी होता है। यह उपमा अरूज़ में इसलिए प्रयुक्त होती है क्योंकि एक रुक्न (छंद का टुकड़ा) कई सबब और वज़्न इकाइयों से मिलकर बना होता है — जैसे रस्सी कई धागों से।
🔸 व्याख्या
हर रुक्न एक "वज़्न की रस्सी" है जो सबबों से बुना गया है।
इसलिए अरूज़ी छंदशास्त्र में सबब को रस्सी की इकाई जैसा समझा जाता है।
🔹Note:-
- सबब = दो अक्षरों वाला ध्वनि खंड
- इसके दो प्रकार होते हैं:
सबब-ए-ख़फ़ीफ़ → मुतहर्रिक + साकिन → वज़्न = 2
सबब-ए-सकील → मुतहर्रिक + मुतहर्रिक → वज़्न = 1 1
- इज़ाफ़त या वाव-ए-अत्फ़ के आने से अंतिम साकिन अक्षर पर हरकत आ सकती है, जिससे वज़्न बदल जाता है।
- सबब की सही पहचान ही बह्र (meter) को समझने का पहला और आवश्यक कदम है। अरूज़ी ज्ञान की शुरुआत यहीं से होती है।
📘 वतद क्या है? – अरूज़ में तीन-हरूफ़ी ध्वनि इकाई की भूमिका
वतद (वज़्न की भाषा में) वह इकाई है जो तीन हरूफ़ (अक्षरों) से मिलकर बनती है। यह अरूज़ (छंदशास्त्र) में सबब की तुलना में एक बड़ा घटक है।
शाब्दिक अर्थ में "वतद" का मतलब होता है – खूँटा (peg)।
रस्सी और खूँटे की ये उपमा हमें आगे रुक्न की संरचना समझाते समय और अच्छे से समझ आएगी।
🔹 तीन-हरूफ़ी वतद के संभव संयोजन (arrangements)
चूंकि हम दो ही प्रकार के अक्षरों के साथ काम करते हैं — मुतहर्रिक (स्वरयुक्त) और साकिन (स्वरहीन),
इसलिए तीन हरूफ़ से बनने वाले वतद के 3 मुख्य रूप हो सकते हैं:
- मुतहर्रिक + मुतहर्रिक + साकिन → असर, सहर, अबद (वतद-ए-मज्मूआ)
- मुतहर्रिक + साकिन + मुतहर्रिक → फ़ा-अ (वतद-ए-मफ़रूक़)
- मुतहर्रिक + साकिन + साकिन → अब्र, जुर्म, अस्ल (वतद-ए-मौक़ूफ़)
🟩 वतद-ए-मज्मूआ (वतद का जुड़ा हुआ रूप)
पहला और दूसरा अक्षर मुतहर्रिक हो
तीसरा अक्षर साकिन
"मज्मूआ" का अर्थ होता है "जमा हुआ" या "मिला हुआ",
इसलिए इसे वतद-ए-मज्मूआ कहा जाता है क्योंकि दो स्वरयुक्त ध्वनियाँ एकसाथ मिलती हैं।
कभी-कभी इसे वतद-ए-मक्रून भी कहा जाता है, मगर हम इसी को वतद-ए-मज्मूआ कहेंगे।
उदाहरण:
अबद = अ (मुतहर्रिक) + ब (मुतहर्रिक) + द (साकिन)
असर, सहर, बरस, सफ़र आदि
वज़्न प्रतीक: 1 1 2
🟦 वतद-ए-मफ़रूक़ (विभाजित वतद)
ऐसा तीन-अक्षरी शब्द जिसमें:
पहला अक्षर मुतहर्रिक
दूसरा अक्षर साकिन
तीसरा अक्षर मुतहर्रिक
"मफ़रूक़" का मतलब है – अलग किया हुआ।
यहाँ दो मुतहर्रिक ध्वनियाँ एक-दूसरे से साकिन अक्षर द्वारा अलग हो जाती हैं।
उदाहरण:
"फ़ा-अ" (फ़ाअ) = फ़ (मुतहर्रिक) + अ (साकिन) + अ (मुतहर्रिक)
यह संरचना किसी रुक्न (जैसे मफ़ाईलुन) के जुज़ (उपखंड) में मिलती है।
वज़्न प्रतीक: 1 2 1
🟥 वतद-ए-मौक़ूफ़ (रुक गया वतद)
ऐसा तीन-अक्षरी शब्द जिसमें:
पहला अक्षर मुतहर्रिक
दूसरा और तीसरा अक्षर साकिन
"मौक़ूफ़" का अर्थ है – रुका हुआ,
क्योंकि इसमें अंतिम दो अक्षर शांति (साकिनता) दर्शाते हैं।
उदाहरण:
अब्र = अ (मुतहर्रिक) + ब (साकिन) + र (साकिन)
अस्ल, उर्द, जुर्म, बुर्ज
वज़्न प्रतीक: 1 2 2
🧵 वतद, रस्सी और खूँटे की कल्पना
पहले आपने पढ़ा कि सबब को रस्सी कहा गया था,
अब वतद यानी खूँटा,
यानि वज़्न की संरचना में रस्सियों को बाँधने वाले स्तंभ या ठहराव के बिंदु।
जब हम रुक्न (Meter Unit) की बुनावट सीखेंगे, तब यह तुलना बेहद सहज लगेगी।
Note:-
वतद = तीन-अक्षरी वज़्न इकाई
वतद के तीन रूप:
- मज्मूआ (1 1 2) → जुड़ी हुई हरकतें
- मफ़रूक़ (1 2 1) → अलग-अलग हरकतों के बीच विराम
- मौक़ूफ़ (1 2 2) → ठहरा हुआ वज़्न
वतद और सबब मिलकर रुक्न बनाते हैं, और रुक्न से बहर (छंद)
📘 फ़ासिला क्या है? – अरूज़ में एक विशेष मात्रा संरचना
अरूज़ (छंदशास्त्र) में जब हम सबब (2-अक्षरी इकाई) और वतद (3-अक्षरी इकाई) को समझ लेते हैं, तो एक और विशिष्ट संरचना सामने आती है — फ़ासिला।
"फ़ासिला" का सामान्य अर्थ होता है – अंतराल या दूरी,
लेकिन अरूज़ में इसका तकनीकी अर्थ कुछ विशिष्ट वज़्न-योजनाओं से होता है।
🔹 फ़ासिला को जानना कितना आवश्यक है?
यह अनिवार्य नहीं है।
आप फ़ासिला को जाने बिना भी अरूज़, बह्र, और वज़्न की ठोस समझ बना सकते हैं।
लेकिन अगर आप फ़ासिला को समझ लेते हैं, तो बह्र की जटिल बनावट में मदद ज़रूर मिलती है।
🧩 फ़ासिला के दो रूप
फ़ासिला को शब्दों की लंबाई (अक्षरों की गिनती) के आधार पर दो श्रेणियों में बांटा जाता है:
1️⃣ फ़ासिला-ए-सुग़रा (छोटा फ़ासिला)
📌 परिभाषा:
ऐसा शब्द जिसमें चार अक्षर (हर्फ़) हों और संरचना हो:
हरकत + हरकत + हरकत + साकिन
यह संरचना इस प्रकार बनती है:
सबब-ए-सकील + सबब-ए-ख़फ़ीफ़
🧪 उदाहरण:
- हरकत = ह (मुतहर्रिक)
- र = मुतहर्रिक
- क = मुतहर्रिक
- त् = साकिन
ऐसे लफ़्ज़ों को "फ़ासिला सुग़रा" कहा जाता है।
2️⃣ फ़ासिला-ए-कुबरा (बड़ा फ़ासिला)
📌 परिभाषा:
ऐसा शब्द जिसमें पाँच हरूफ़ हों और संरचना हो:
हरकत + हरकत + हरकत + हरकत + साकिन
यह संरचना इस प्रकार बनती है:
सबब-ए-सकील + वतद-ए-मज्मूआ
🧪 उदाहरण:
कोई भी 5-अक्षरी शब्द जिसमें चार स्वरयुक्त और अंतिम साकिन अक्षर हो —
जैसे (सैद्धांतिक उदाहरण):
"हिरकत्", "जबरक्" (कल्पित शब्द)
⇒ वज़्न: 1 1 1 1 2
📙 संक्षेप में: फ़ासिला का सार
फ़ासिला अरूज़ की तकनीकी भाषा में एक 4 या 5 अक्षरों की विशेष वज़्न संरचना को कहा जाता है।
- फ़ासिला-ए-सुग़रा → 4 अक्षर
- संरचना: 1+1+1+2
- बनावट: सबब-ए-सकील + सबब-ए-ख़फ़ीफ़
- वज़्न: 1 1 1 2
- फ़ासिला-ए-कुबरा → 5 अक्षर
- संरचना: 1+1+1+1+2
- बनावट: सबब-ए-सकील + वतद-ए-मज्मूआ
- वज़्न: 1 1 1 1 2
NOTE:-
फ़ासिला अरूज़ में 4 या 5 अक्षरों की एक विशेष वज़्न संरचना है।
इसे जानना जरूरी नहीं है, लेकिन यह फायदेमंद ज़रूर है — खासकर तब जब आप बह्र की गहराई में उतरते हैं।
धीरे-धीरे इन सब परिभाषाओं की आदत हो जाएगी।
शुरुआत में कठिन लगना स्वाभाविक है, लेकिन धैर्य रखिए — यह सब ज्ञान आगे आपकी ग़ज़ल और शे’र की बुनियाद को बहुत मजबूत बनाएगा।
🔹 ज़ुज़ (جزء) क्या है?
📌 परिभाषा
अरूज़ की भाषा में "ज़ुज़" का अर्थ होता है – एक टुकड़ा।
यह टुकड़ा दो मुख्य इकाइयों से बनता है:
- सबब (2-अक्षरी इकाई)
- वतद (3-अक्षरी इकाई)
जब आप किसी सालिम रुक्न (पूर्ण छंद इकाई) को देखें, तो वह दरअसल कई छोटे ज़ुज़ों से मिलकर बना होता है।
हर ज़ुज़ अरूज़ की संरचना का एक आवश्यक हिस्सा होता है।
उदाहरण
मान लीजिए कोई रुक्न है: मुसतफ़इलुन
इसका वज़्न है: 2 2 1 2
इसमें संभावित ज़ुज़ कुछ इस प्रकार हो सकते हैं:
- पहला ज़ुज़: 2 (सबब)
- दूसरा ज़ुज़: 2 1 (वतद)
- तीसरा ज़ुज़: 2 (सबब)
👉NOTE:-
ज़ुज़ = सबब + वतद जैसी इकाइयाँ
इनसे मिलकर रुक्न बनता है और रुक्न से पूरी बह्र।
🔹 ज़िहाफ़ (زحاف) क्या है?
📌 परिभाषा
ज़िहाफ़ अरूज़ की एक विशेष प्रक्रिया है
जिसके माध्यम से किसी सालिम रुक्न के अंदर मौजूद सबब या वतद को बदला जाता है।
उद्देश्य
- वज़्न में हल्की-फुल्की काट-छाँट लाने के लिए
- शे’र की लय और रवानगी को बेहतर बनाने के लिए
- शब्दों की सुंदरता बढ़ाने के लिए
📎 प्रभाव
जब किसी रुक्न पर ज़िहाफ़ लगाया जाता है, तो:
- सालिम रुक्न की बनावट बदल जाती है
- उसे कहा जाता है: मुज़ाहिफ़ रुक्न
- वज़्न में अक्सर कमी आती है, लेकिन कुछ मामलों में बढ़ोतरी भी हो सकती है
🧮 ज़िहाफ़ का वर्गीकरण
🟢 A. स्थान (लोकेशन) के आधार पर ज़िहाफ़ के प्रकार
- ऐसा ज़िहाफ़ जो शे’र के किसी भी स्थान पर आ सकता है
- उदाहरण: ख़ब्न, क़ब्ज़, तय्यी
- ऐसा ज़िहाफ़ जो शे’र के विशिष्ट स्थानों पर ही लगाया जाता है
- उदाहरण: क़स्र, हज़्फ़, खरम
📎 नोट:
यहाँ "शे’र का स्थान" का अर्थ है —
क्या ज़िहाफ़ शे’र की शुरुआत में लगाया जा सकता है, बीच में या अंत में।
🟡 B. संरचना के आधार पर ज़िहाफ़ के प्रकार
1. मुफ़रद ज़िहाफ़
-
एकल ज़िहाफ़
-
जिसे किसी रुक्न पर केवल एक बार और अकेले लागू किया जाए
-
प्रभाव: सरल और सीमित
2. मुरक्कब ज़िहाफ़
-
दो या अधिक ज़िहाफ़ों के मेल से बना हुआ ज़िहाफ़
-
प्रभाव: गहरा, जटिल और अधिक कलात्मक
📚 कुल ज़िहाफ़ात कितने होते हैं?
अरूज़ में प्रायोगिक रूप से अब तक लगभग 50 ज़िहाफ़ों का वर्णन मिलता है।
हालांकि, सभी को जानना आवश्यक नहीं है।
📌 सामान्य अभ्यास के लिए सिर्फ कुछ प्रमुख ज़िहाफ़ पर्याप्त होते हैं, जैसे:
- ख़ब्न
- हज़्फ़
- तय्यी
इन्हीं को ग़ज़ल और बह्र के अभ्यास में ज़्यादा उपयोग किया जाता है।
📝 संक्षेप में
ज़ुज़
- अर्थ: टुकड़ा
- कैसे बनता है: सबब और वतद से
- क्यों ज़रूरी है: बह्र की रचना और वज़्न को समझने के लिए
ज़िहाफ़
- अर्थ: वज़्न की काट-छाँट
- कैसे बनता है: सालिम रुक्न के हिस्सों को बदलने से
- क्यों ज़रूरी है: शे’र को लय में लाने, सजाने और कलात्मक बनाने के लिए
📌 NOTE:-
ज़ुज़ और ज़िहाफ़ अरूज़ के दो अत्यंत महत्वपूर्ण तकनीकी पहलू हैं।
- ज़ुज़ समझने से आप वज़्न की बुनियादी इकाइयों को समझते हैं
- ज़िहाफ़ सीखकर आप शे’र में लय, अनुपात, और कलात्मक छेड़छाड़ लाते हैं
घबराइए मत —
यह सब अभ्यास और नियमित उदाहरणों के साथ बिल्कुल सहज हो जाएगा।