बह्र का परिचय — उर्दू-फ़ारसी शायरी की छुपी हुई धड़कन
🔷 बह्र क्या है?
"बह्र" एक अरबी शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ है — समुद्र, लहरें, विस्तार। शायरी में यह शब्द प्रतीक बन गया उस लयात्मक तरंग का, जिसमें शेरों की रचना की जाती है। जैसे समुद्र की लहरों में एक निश्चित आवृत्ति होती है, वैसे ही बह्र शायरी को एक अनसुना संगीत और ताल देती है।
सरल शब्दों में:
बह्र का अर्थ है — शेर को कहने का एक निश्चित पैटर्न, जिसमें शब्दों की मात्रा तय होती है और वो पैटर्न पूरे शेर में समान रहता है।
🔷 बह्र क्यों ज़रूरी है?
बह्र, शेर की आत्मा है। अगर कोई शेर बह्र से बाहर हो जाए, तो वो तकनीकी रूप से शायरी नहीं रह जाता — वो एक "बहर से बाहर" (बहर ख़राब) टुकड़ा बन जाता है। बह्र का महत्व इसलिए है:
-
यह शेर को लयबद्ध बनाता है।
-
यह काफ़िया और रदीफ़ के साथ संतुलन पैदा करता है।
-
यह सुनने में आकर्षक बनाता है, विशेषकर महफ़िलों में।
-
बह्र से ही यह तय होता है कि एक शायर कितना तकनीकी रूप से सक्षम है।
🔷 बह्र कैसे बनती है?
बह्र का आधार होता है "मात्राएँ", जिन्हें अरबी-फ़ारसी में "हर्फ़" और "रुक्न" कहा जाता है।
🟢 दो प्रकार की अरूज़ी मात्राएँ होती हैं:
-
मुतहर्रिक (हिलती हुई) – यानी वह अक्षर जिसके बाद स्वर हो (उदाहरण: "क", "ब", "ल" जैसे अक्षर जो आवाज़ में खुले हों)। इसे "1" से दर्शाया जाता है।
-
साकिन (रुकी हुई) – वह अक्षर जो किसी व्यंजन पर आकर रुक जाए (जैसे "त्", "र्", "द्")। इसे "2" से दर्शाते हैं।
इन मात्राओं को एक क्रम में रखकर "वज़्न" बनता है। वज़्न एक रचना की धड़कन है। इसी वज़्न से तय होता है कि शेर किस बह्र में है।
🔷 बह्र के प्रकार (उदाहरण सहित)
उर्दू शायरी में दर्जनों बह्रें होती हैं। इनमें से कुछ प्रमुख बह्रें हैं:
1. बह्र-ए-हज़ज
वज़्न: मफ़ा'ईलुन मफ़ा'ईलुन मफ़ा'ईलुन मफ़ा'ईलुन
उदाहरण:
कोई उम्मीद बर नहीं आती
कोई सूरत नज़र नहीं आती
2. बह्र-ए-रमल
वज़्न: फ़ा'ईलातुन फ़ा'ईलातुन फ़ा'ईलातुन फ़ा'ईलातुन
उदाहरण:
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमाँ लेकिन फिर भी कम निकले
3. बह्र-ए-मुतदारिक
वज़्न: फ़ाएलुन फ़ाएलुन फ़ाएलुन फ़ाएलुन
उदाहरण:
दिल से तेरी निगाह जिगर तक उतर गई
दोनों को इक अदा में रज़ामंद कर गई
4. बह्र-ए-मुसम्मन-मकफ़ूफ़-महज़ूफ़-मकबूज़
(इसका नाम लंबा है, पर शायरी में बहुत काम आता है)
वज़्न: मफ़ऊलु फ़ाइलातु मफ़ाईलु फ़ाइलुन
उदाहरण:
हमको मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन
दिल के बहलाने को ग़ालिब ये ख़याल अच्छा है
बहर तो बहुत हैं, लेकिन उर्दू शायरी में मुख्य रूप से 19 बहर इस्तेमाल किए जाते हैं। ये बहर आगे भी कई तरह से बांटे गए हैं, लेकिन यहाँ उनका वर्णन नहीं किया गया है। इनके नाम इस प्रकार हैं:
- बहर-ए-रजज़
- बहर-ए-रमल
- बहर-ए-बसीत
- बहर-ए-तवील
- बहर-ए-कामिल
- बहर-ए-मुतादारिक
- बहर-ए-हज़ाज
- बहर-ए-मुशाकिल
- बहर-ए-मदीद
- बहर-ए-मुतक़ारिब
- बहर-ए-मुजतस
- बहर-ए-मुज़ारा
- बहर-ए-मुंसारेः
- बहर-ए-वाफ़र
- बहर-ए-क़रीब
- बहर-ए-सारी
- बहर-ए-ख़फ़ीफ़
- बहर-ए-जदीद
- बहर-ए-मुक्ताज़ेब
🔷 बह्र की पहचान कैसे करें?
शेर को बह्र में तौलने की प्रक्रिया को "तज़्कीका" या "वज़्न करना" कहा जाता है। इसके लिए शेर को उच्चारण करके उसकी मात्राएँ गिनी जाती हैं। जैसे:
उदाहरण:
कोई उम्मीद बर नहीं आती
कोई सूरत नज़र नहीं आती
यह दोनों पंक्तियाँ समान मात्रा क्रम में आती हैं — यानी एक ही बह्र में हैं।
वज़्न करने के लिए:
- शब्दों को उच्चारण के अनुसार तोड़ें।
- हर अक्षर को 1 या 2 मात्रा दें।
- पूरी पंक्ति को जोड़कर देखें कि क्या वह किसी बह्र के वज़्न से मेल खा रही है।
🔷 बह्र और शायर का रिश्ता
हर शायर की अपनी पसंदीदा बह्र होती है। ग़ालिब, मीर, जिगर, फ़ैज़, इक़बाल — इन सभी ने अलग-अलग बह्रों में प्रयोग किए, लेकिन सबका एक साझा गुण था — बह्र की पाबंदी।
सच्चा शायर वही होता है जो भावनाओं को बह्र की सीमा में बाँधकर भी आज़ाद अभिव्यक्ति दे। यही शायरी की सबसे बड़ी चुनौती और कला है।
🔷 क्या बिना बह्र के शायरी हो सकती है?
तकनीकी रूप से नहीं। अगर कोई शेर बह्र से बाहर है, तो उसे "ना-मवज़ूं" कहा जाता है, और उसे पारंपरिक शायरी में स्वीकार नहीं किया जाता। हाँ, आधुनिक कविता या मुक्त छंद में बह्र की बाध्यता नहीं होती — लेकिन वहाँ वह शायरी नहीं, कविता होती है।
🔷 बह्र सीखने का महत्व
- अगर आप शायर हैं, तो यह अनिवार्य है।
- अगर आप शायरी को तसल्ली से समझना चाहते हैं, तो बह्र की समझ आपकी दृष्टि को तेज कर देगी।
- ग़ज़लें कहने की शुरुआत करने वालों के लिए यह पहला औज़ार है।
🔷 बह्र की तुलना संगीत से
- जैसे राग में सुरों की एक बंदिश होती है, वैसे ही ग़ज़ल में बह्र होती है।
- बह्र ही वह मंच है जिस पर शब्द नृत्य करते हैं।
- जैसे हर गीत एक धुन पर आधारित होता है, वैसे ही हर शेर एक बह्र पर आधारित होता है।