वज़्न यानी मीटर शायरी की वह लयात्मक संरचना होती है जो किसी शेर या मिसरे को सुनने में मधुर, संतुलित और प्रभावशाली बनाती है। यह कविता या ग़ज़ल में शब्दों की मात्रा और गति को नियंत्रित करता है, जिससे हर शेर एक तयशुदा ताल में बंधा रहता है। वज़्न की सही पहचान और प्रयोग से शायरी में वह खूबसूरती आती है जो सीधे दिल तक उतरती है।
वज़्न को तय करने के लिए अरूज़ (उर्दू शायरी का व्याकरण) के नियमों का पालन किया जाता है। अरूज़ यह निर्धारित करता है कि कौन-से मिसरे या शेर एक ही बह्र (लय या मीटर) में हैं। हर बह्र की अपनी खास मात्रा होती है — जैसे 16 मात्रा, 24 मात्रा, 32 मात्रा आदि — और हर मात्रा एक निश्चित वज़्न रखती है।
✍️वज़्न (मीटर) क्या होता है
📖 ग़ज़ल की रचना और उसकी शायराना तामीर: नियम, प्रतीक और गहराई
उर्दू अदब की सरज़मीन पर दो विधाएँ विशेष रूप से अपनी अलग पहचान रखती हैं — एक है ग़ज़ल, जो अनुशासन का पर्याय है, और दूसरी नज़्म, जो आज़ादी की आवाज़ है।
यदि आपने पहले “उर्दू शायरी की बुनियाद” और “देवनागरी में उर्दू कैसे पढ़ें और लिखें” जैसे लेख पढ़ लिए हैं, तो मान लीजिए आप ग़ज़ल की इमारत की बुनियाद और दीवारें खड़ी कर चुके हैं।
अब इस लेख के ज़रिए हम उसकी छत डालने जा रहे हैं — यानी ग़ज़ल की भीतरी बनावट, नियम और रूह को समझेंगे।
🌳ग़ज़ल की संरचना — उल्टे पेड़ की तसवीर
एक पल के लिए सोचिए कि आपने किसी पेड़ को उल्टा टाँग दिया — जड़ें ऊपर और शाखाएँ नीचे।
ठीक यही रूप आपको ग़ज़ल के ढाँचे में मिलेगा। इसका पहला शेर होता है "मतला", जो उस पेड़ की जड़ है।
आख़िरी शेर होता है "मक़्ता", जो उसकी टहनी या सिरा है।
बीच में आने वाले शेर इस पेड़ की शाखाओं जैसे हैं, जो जड़ से पोषण लेते हैं और सिरा तक पहुंचते हैं।
📝ग़ज़ल की परिभाषा
ग़ज़ल उस शेरों की माला को कहते हैं जो:
- एक ही बहर (छंद या मीटर) में पिरोए गए हों,
- और एक ही रदीफ़ (दोहराया जाने वाला शब्द) मौजूद हो।
- जिनमें समान क़ाफ़िया (तुक) हो,
हर शेर अपने आप में एक मुकम्मल विचार हो सकता है, पर ग़ज़ल के भीतर वो सभी शेर एक सांगीतिक लय और भावात्मक प्रवाह में बंधे होते हैं।
🔠ग़ज़ल की बुनियादी इकाइयाँ
🔹1️⃣ मतला — आरंभिक शेर
ग़ज़ल का पहला शेर मतला कहलाता है। इसकी ख़ास पहचान यह है कि इसके दोनों मिसरों में क़ाफ़िया और रदीफ़ मौजूद होते हैं।
यही शेर पूरे ग़ज़ल की बहर, रदीफ़, और क़ाफ़िया तय करता है।
🔸 उदाहरण:
ज़िंदगी जब भी तिरी बज़्म में लाती है हमें
ये ज़मीं चाँद से बेहतर नज़र आती है हमें
— शहरयार
- रदीफ़: "है हमें"
- क़ाफ़िया: "आती"
🔹2️⃣ मक़्ता — अंतिम शेर
ग़ज़ल का अंतिम शेर मक़्ता कहलाता है। इसकी विशेषता यह है कि इसमें शायर अपना तख़ल्लुस (कवि का उपनाम) शामिल करता है।
यही शेर शायर की हस्ताक्षर रेखा होता है।
🔸 उदाहरण:
बस यही मुमकिन था हम से दश्त-ए-ग़ुर्बत में 'अक़ील'
अपने क़द को अपनी चादर के बराबर कर लिया
— अक़ील नोमानी
📏बहर — ग़ज़ल की लय और जीवन रेखा
हर शेर की एक नाप-तोल, एक लय, और एक वज़्न होता है, जिसे बहर कहा जाता है।
शब्दों के अक्षरों की मात्रा — लघु (1 मात्रा) और दीर्घ (2 मात्राएँ) — गिनकर तय किया जाता है कि वो शेर बहर में है या नहीं।
इस गणना को तक्तीअ कहा जाता है।
🧮तक्तीअ — शेर का वज़्नी विश्लेषण
🔸 उदाहरण शेर:
तेरे ग़म को अपनी रातों का मुक़द्दर कर लिया
जागना था इस लिए काँटों पे बिस्तर कर लिया
— अकील नोमानी
🔸 तक्तीअ:
तेरे (22/21) | ग़म (2) | को (2/1) | अपनी (22/21) | रातों (22/21) | का (2) | मुक़द्दर (122) | कर (2) | लिया (12)
🔸 बहर का पैटर्न:
2122 – 2122 – 2122 – 2122
🧂रदीफ़ और क़ाफ़िया — भावों के स्वाद
ग़ज़ल की बुनियाद बहर होती है, लेकिन उसकी खूबसूरती क़ाफ़िया और रदीफ़ में निखरती है।
- क़ाफ़िया: मिलती-जुलती ध्वनि वाले शब्द (जैसे 'जान', 'शान')
- रदीफ़: हर दूसरे मिसरे के अंत में दोहराया गया शब्दांश
🔸 उदाहरण:
तेरे ग़म को अपनी रातों का मुक़द्दर कर लिया
जागना था इस लिए काँटों पे बिस्तर कर लिया
जिस को चाहा बस उसी का रास्ता तकते रहे
पत्थरों की जुस्तुजू में ख़ुद को पत्थर कर लिया
— अकील नोमानी
- रदीफ़: "कर लिया"
- क़ाफ़िया: "मुक़द्दर", "बिस्तर", "पत्थर"
🍷शायरी का शरबत — लय, स्वाद और तरावट
ग़ज़ल अगर एक पेय है तो:
- बहर उसका मूल रस है
- क़ाफ़िया और रदीफ़ उसकी खुशबू और मिठास हैं
बिना बहर के शेर एक विचार हो सकता है — लेकिन वो शायरी नहीं कहलाता।
🎯ग़ज़ल — अनुशासन में सौंदर्य की मिसाल
ग़ज़ल वो फ़न है जिसमें हर शेर स्वतंत्र होकर भी एक सूत्र में बँधा होता है।
यह एक अद्भुत कला है जिसमें संयम, गहराई, संगीतात्मकता और आत्मीयता एक साथ विद्यमान रहती हैं।
ग़ज़ल को सिर्फ़ लिखा नहीं जाता — महसूस किया जाता है, जिया जाता है, गुनगुनाया जाता है।
✅अभ्यास कार्य: आपकी बारी!
🔸 उदाहरण शेर:
मुसाफ़िर तिरा ज़िक्र करते रहे
महकता रहा रास्ता देर तक
— अकील नोमानी
👉 अब आप इस शेर की तक्तीअ करें और बताएं इसकी बहर क्या है?
❓FAQ – अरूज़ क्या है?
Q1: अरूज़ क्या है और इसका क्या महत्व है?
उत्तर: अरूज़ क्या है – यह ग़ज़ल में लय और छंद की समझ को दर्शाता है जो हर शेर को सही मीटर में बाँधता है।
Q2: क्या अरूज़ क्या है को बिना समझे शायरी लिखी जा सकती है?
उत्तर: तकनीकी रूप से हाँ, परंतु शायरी की गुणवत्ता और लय गड़बड़ा सकती है।
Q3: अरूज़ क्या है को सीखने का सबसे आसान तरीका क्या है?
उत्तर: तक्तीअ का अभ्यास करें और शायरों के शेरों की मात्रा पहचानें।
Q4: अरूज़ क्या है ग़ज़ल की बहर से कैसे जुड़ा है?
उत्तर: अरूज़ ही वह नियम है जो ग़ज़ल की बहर निर्धारित करता है।
Q5: अरूज़ क्या है और रदीफ़-क़ाफ़िया में क्या संबंध है?
उत्तर: अरूज़ बहर तय करता है, जबकि रदीफ़-क़ाफ़िया ग़ज़ल का सौंदर्य बढ़ाते हैं।
🔚 Conclusion: अरूज़ क्या है?
अरूज़ क्या है – यह समझना उर्दू शायरी के हर प्रेमी और अभ्यासकर्ता के लिए आवश्यक है।
अरूज़ की जानकारी से ही शायरी को तकनीकी, संगीतात्मक और भावनात्मक संतुलन मिलता है।
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