शायरी की रचना: मिसरा, शेर, मतला, मक़ता क्या होते हैं?

 इस टॉपिक में उर्दू शायरी की बुनियादी संरचनात्मक इकाइयों — मिसरा, शेर, मतला और मक़ता — का परिचय विस्तार से दिया गया है। इन शब्दों का अर्थ, उनकी शायरी में भूमिका, और उनके प्रयोग की सही विधि को सरल भाषा में समझाया गया है। यह भाग बताता है कि एक शेर किन दो मिसरों से बनता है, मतला में काफ़िया-रदीफ़ की अहमियत क्या होती है, और मक़ता में शायर अपना तख़ल्लुस किस प्रकार प्रयोग करता है। यह विषय विशेष रूप से उन पाठकों और लेखकों के लिए उपयोगी है जो शायरी की तकनीकी बुनियाद को गहराई से समझना चाहते हैं।

3. शायरी की रचना: मिसरा, शेर, मतला, मक़ता क्या होते हैं?



🌿 1. मिसरा (مصرعہ) – शायरी की एक पंक्ति

परिभाषा:

उर्दू शायरी की एक पंक्ति को मिसरा कहा जाता है। यह शेर का आधा भाग होता है।

दो प्रकार:

प्रकार अर्थ उदाहरण में
मिसरा-ए-उला पहली पंक्ति पहले ऊपर
मिसरा-ए-सानी दूसरी पंक्ति नीचे वाली

उदाहरण:

मिसरा-ए-उला: दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त,
मिसरा-ए-सानी: दर्द से भर न आए क्यों।


🕊️ 2. शेर (شعر) – दो मिसरों की एक इकाई

परिभाषा:

दो मिसरों को मिलाकर जो एक पूरी बात कही जाए, उसे शेर कहते हैं।
हर शेर स्वतंत्र अर्थ रख सकता है।

विशेषताएँ:

  • शेर में तुक (क़ाफ़िया) और रदीफ़ का पालन हो सकता है।

  • शेर स्वयं एक पूर्ण विचार होता है।

उदाहरण:

हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले,
बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले।ग़ालिब


3. मतला (مطلع) – ग़ज़ल की पहली कड़ी

परिभाषा:

ग़ज़ल का वह पहला शेर जिसमें दोनों मिसरों में क़ाफ़िया और रदीफ़ का प्रयोग होता है, उसे मतला कहते हैं।

उदाहरण में पहचान:

  • इसमें रदीफ़ और क़ाफ़िया दोनों मिसरों के अंत में होंगे।

उदाहरण (मतला):

कोई उम्मीद बर नहीं आती,
कोई सूरत नज़र नहीं आती।
👉 यहाँ "नज़र नहीं आती" = रदीफ़, और "बर" / "सूरत" से पहले के काफ़िया हैं।

🔹 एक ग़ज़ल में कम से कम एक मतला ज़रूरी होता है।

🔹 अगर दो या अधिक हों तो दूसरा 'हुस्न-ए-मतला' कहलाता है।


🎯 4. मक़ता (مقطع) – ग़ज़ल का अंतिम शेर

परिभाषा:

ग़ज़ल का आख़िरी शेर जिसमें शायर अपना तख़ल्लुस (उपनाम) प्रयोग करता है, उसे मक़ता कहते हैं।

विशेषता:

  • इसमें शायर अपनी बात को निष्कर्ष में कहता है।

  • यह पहचान है कि ग़ज़ल किस शायर की है।

उदाहरण:

रहते हैं इसी शहर में कई 'ग़ालिब' भी,
चलो अच्छा हुआ पहचान तो आई।
👉 यहाँ 'ग़ालिब' तख़ल्लुस है, और यह मक़ता है।


📌 एक ग़ज़ल की संरचना का सारांश:

तत्व अर्थ क्या ज़रूरी है?
मिसरा शेर की एक पंक्ति ✔️
शेर दो मिसरों का एक अर्थपूर्ण समूह ✔️
मतला पहला शेर, दोनों मिसरों में क़ाफ़िया-रदीफ़ ✔️
मक़ता आख़िरी शेर, जिसमें तख़ल्लुस हो ❌ (परंपरागत में आम)

🧠 उदाहरण द्वारा पूरी ग़ज़ल समझें:

मतला (पहला शेर):

दिल ढूंढता है फिर वही फ़ुर्सत के रात दिन,
बैठे रहें तसव्वुर-ए-जानाँ किए हुए।

➡ दोनों मिसरों में "किए हुए" रदीफ़, और पहले हिस्से में काफ़िया है।

बीच के शेर (सादे शेर):

हमको भी तरस आता है अक्सर ग़रीब पर,
जिसके पास कुछ नहीं, तन्हाई किए हुए।

➡ सिर्फ़ दूसरे मिसरे में क़ाफ़िया-रदीफ़ होता है।

मक़ता (आख़िरी शेर):

'विकास' भी अब शहर में तनहाई ओढ़े फिरता है,
कितनी भीड़ में है ये, परछाईं किए हुए।

➡ यहाँ 'विकास' तख़ल्लुस है, और यह मक़ता है।


🔚 निष्कर्ष:

उर्दू शायरी की आत्मा उसकी रचना-शैली में छुपी होती है।

  • मिसरा वो धड़कन है,

  • शेर उसकी साँस है,

  • मतला उसकी शुरुआत का रंग है,

  • और मक़ता उसका आत्म-परिचय।


 

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